पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/९८

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(९०) ताजिकनीलकण्ठी । हो तो सुख और धर्मादि शुभ फलका संभव करता है, स्वस्वामी वा शुभसे युक्त दृष्ट सहम वर्षके उत्तरार्द्ध अर्थात् प्रवेशसे ६ महीने पीछे सौख्यादि फल देता है, जो पापादि युक्त दृष्टसे अशुभ फल है, वह वर्ष पूर्वार्द्ध में होता है ॥ ३२ ॥ ७ ॥ || अनुष्टु०-पापयुक्छुभदृष्टंवेदशुभंप्राक्ततःशुभम् शुभयुक्तंपापदृष्टमादौशुभमसत्परे ॥ ३३ ॥ ८ ॥ संसर्गसे स्वभाव गुण बदल जाता है पुण्यादिसहम पापयुक्त और शुभ दृष्ट हो तो वर्षके पूर्वार्द्ध में अशुभ, उत्तरार्द्ध में शुभ फल देते हैं. जो शुभ युक्त और पाप दृष्ट हों तो पूर्वार्द्धमें शुभ फल उत्तरार्द्ध में अशुभ फल देते हैं जो युक्त और दृष्टमी पापहीसे हो तो समस्त वर्ष में अशुभही फल होगा; जो शुभहीसे युक्त और दृष्टभी हों तो समस्त वर्ष में शुभही फल होगा || ३३ ॥ ८ ॥ अनु० – यत्राब्देपुण्य सहमंशुभंसोऽत्रशुभावहः || अनिष्टेऽस्मिञ् भेनेतिपुण्यमादौविचारयेत् ॥ ३४ ॥ ९ ॥ जिस वर्षमें पुण्यसहम पूर्वोक्त विधिसे शुभ हो वह समस्तही शुभ होता है और सहम अशुभ भी हों तो अनिष्टफल सहसा नहीं देसकते जिसमें पुण्य सहम ( निर्बल ) अशुभ है वह वर्ष अशुभही व्यतीत होता है. और सहम शुभ भी हों तो शुभ फल नहीं देते इसकारण पुण्यसहम सभी "जन्मवर्षमें" मुख्य विचार्य्यहै ॥ ३४ ॥ ९ ॥ अनु॰—सूतौषष्ठाष्टरिःफस्थेमध्येपापहतंपुनः ॥ पुण्यंधर्मार्थसौख्यध्नंपत्यौदग्धेफलंतथा ॥ ३५ ॥ १० ॥ जन्ममें पुण्यसहम लग्नसे छठा आठवाँ वा चारहवाँ हो और वर्ष में पापयुत हो तथा सहमेश ( दग्ध ) अस्तंगत हो, तो धर्म, धन और सुखका नाश करता है ॥ ३५ ॥ १० ॥ अनु० - सहमान्य खिलानीत्थंस्तौवर्षेविचिंतयेत् ॥ मांद्यारिकलिमृत्यूनांव्यत्ययादादिशेत्फलम् ॥ ३६ ॥ ११ ॥