१८] सलवग्ग [ १०९ तिस्स (थेर ) २४०-अयसा 'व भलं समुठितं तङगाय तदैव खादति । एवं अतिधोनचारित्रं सानि कम्मानि नयन्ति दुर्गाति ॥६॥ ( अयस इव मलं समुत्थितं त(स्स) उत्थाय तदैव खादति । एवं अतिधावनचारिणं स्वानि कर्माणि नयन्ति दुर्गतिम् ॥६) अनुवाद-- कोलेसे उपब मछ (= मुखं ) जैसे बिसीसे उत्पन्न होता है, उसे ही खा डाकता है; इसी प्रकार अति उंचल (श्रुप के अपने ही फर्म उसे दुर्गतिको छे जाते हैं । ( छाछ ) उदायी ( धेर) वेतन २४१: -आसन्नायमला मन्ता अनुष्ठानमला घरा। मलं वएस्स कोसज्जं पमादो रुखतो भलें ॥७॥ (अस्वाध्ययम मंत्र अनुस्थालमळा गृहाः । मलं वर्णस्य कौशोथं, प्रमादो रक्षतो भयम् | ) अनुवाद---वाध्याय ( = a एवरपूर्वक पाठकी आवृति ) न करता ( वैद् -)का भळ (= मुञ्च ) है, ( कीप पोत मरम्मत कर ) न उठाना घरोंका चर्चा है । शरीरका सुत्र आलस्य है, अखबघानी रक्षका चर्चा है। रजगृह ( वेणुवन ) फेई कुपुत्र २४२-अतिथिया दुच्चरितं मच्छे' ददतो मलं । मला चे पापका मा अस्मिं लोके परम्हि च ॥८॥
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