१ २४ ॥ धम्मपदं [ २०८ अनुयादि-—सभी संस्कृत (=कृत, निर्मित, वनी) चीजें अजिय ॐ , यह जय प्रज्ञा देबता , साथ समी डुचैसे विर्वेद (=विराग को प्राप्त होता है, यही मार्ग (चित्च-) आखिका है। [दुःख-लक्षणम् ॥ ९७८सन् सङ्ग्रा दुक्खा ’ति यदा पाय पसति । अथ निर्विन्दति दुक्खें, एस भगो विमुद्भिया ॥६॥ ( सर्वे संस्कारा दुवा इति यदा प्रज्ञया पश्यति । अथ निर्विन्दति दुखानि, एष मार्गो विशुद्धये ॥ ६॥ अनुवाद-सभी संस्कृत ( चीजें) हुक्षमय हैं ०॥ [ अनाम-लक्षणम् ॥ २७8-सब्वे धम्मा अनता 'ति यदा पञ्ज्ञाय प्रसति । अथ निव्विन्दति दुक्खे एस मग्गो विमुट्ठिया ॥७॥ ( सर्वे धर्मा अनात्मान इति यदा प्रज्ञया पश्यति । अथ निर्विन्दति दुखानि एप मार्गा विशुद्धये ॥७) अनुवाद-—सभी धर्म (=पदार्थ ) विना आमाके , •। जैतवन ( योगी ) तिरस (थेर ) २८०-उठानकालम्हि अनुच्हानो भुवा बली शालसियं उपेतो। संसत्र सङ्कष्पमनोकुसीतोपलायमगंजलसनन्विति॥८॥
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