पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/१५३

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१४२] धम्मपदं [ २३५ दान्तपर राचा चढ़ता है, मनुष्योंभी दान्त (=सहनपीछ ) भेड है, जो कि कटुवाक्योंको सहन करता है। ३२२-ब अस्सत्ता दन्ता आजानीया च सिन्धवा । कुज़ारा च महानागा अत्तन्ते ततो वरं ॥३॥ (घरमदवता दान्ता आजानीयाश्च सिंधवः। कुंजरा महानागा आरमदान्तस्ततो वरम् ॥३) अनुवाद-भघ , उत्तम खेतके सिन्थी घोड़े, और महानाग हाथी दान्त (=विक्षित ) होनेपर श्रेष्ठ हैं, और अपने को सन किया (पृश्य ) उनसे भी श्रेष्ठ है। तबन (चूतपूर्वं महाबत मिळ ) ३२३-नहि एतेहि यानेहि गच्छेय्य आगतं दिसे । ययाऽतना सुदन्नेन दन्तो दन्तेन गच्छति ॥४॥ (नहि पतैर्यानैः गच्छेदगतां दिशम् । यथा भना । सुदान्तेन दान्तो दान्तेन गच्छति ॥४॥ ) अनुवाद-इन (हाथी, घोड़े आदि ) यानोसे, विमा गई दिक्षा • घाटी (निर्वाण)ी और मह जाया जा सकता, संयमी पुरुष अपनेको संयम कर संयन ( इम्त्रियो )साथ (यह) = पहुँच सकता है। अतबन ( परिजिष्ण आदयपुर) ३२४-धनपालको नाम कुञ्जरो फटकम्पमैटनो दुनिवाये । वद्रो फबलं न भुञ्जति मुमरति नागवनस्स कुम्भरो ॥१॥