२७१७ } तदावा [ १५३ सर्वदुक्ता मणिकुंडलेषु पुत्रेषु दारेषु च याऽपेक्षा ॥१३) अनुवाद-( यह ) जो लोहे छकडी या रस्सीका यन्धन है, उसे बुद्धि आन ( जन ) इदं यन्धन नहीं कहते, ( वस्तुत: इट्स बन्धन है जो यह) घन(=सारख)में रुक होना, या सणि, कुष्ठक, पुत्र स्नुनै इच्छाका होना है। ३ ४६-एतं दब्दं वन्धनमाहु धीरा ओोहारिने सिथितं दुष्यमुञ्चं । एतपि चेवन परिस्बजन्ति अनपेक्खिनो कामसुखं पहाय ॥१३॥ (पतद् दृढं बन्धनमाहुर्धा क्षपहारि शिथिी दुष्पमोचम् । एतदपि छित्वा परिचजन्य नपेक्षिणः कामसुखं अहाय ॥ १३ ॥) अनुवाद--धीर पुरुष इसीको इट्स बन्धन, अपरक शिथिछ और तुरयाज्य कहते हैं,(वहे) अपेक्षा रहित हो, तथा कासमुखों- को छो, इख (ख) यन्चनको छिलकर, प्रव्रजित होते हैं। राजगृह (वेणुवन) मा (बिम्बसारमहिषी ) ३४७-थै रागतांनुपतन्ति सोते सयं कृतं मक्कको ’व झालं । एतपि चेवान बलन्ति धीरा अनपेक्खिनो सव्वदुक्खं पहथ ॥ १४॥
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