धम्मपदं | १८ आबस्ती ( जेतवन) देवदत १७-६ध तण्पति पेच्च तम्पति पापकारी उमयत्य तपति । पापं मे तन्ति तपति भीय्यो ण्पति दुगतिव्रतो ॥ १७॥ ( इह तप्यति प्रेस्य तप्यति पापकारीखभयत्र तप्यति । पापं मे कृतमिति तप्यति, भूयस्तष्यति दुर्गतिंगतः ॥१) अनुवाद-—यह खतप्त होता है, अरक्कर सन्तप्त होता है, पापकारी दोनों जगह सन्तप्त होता है । "मैने पाप किया है"-यह ( सोच ) सन्तप्त होता है , दुर्गतिन प्राप्त हो और भी सन्तप्त होता है । सुमना देवी अबस्ती ( जैतवन ) १८- नन्दति पेच्च नन्नति कतपुब्लो उभयय नन्दति । पुघ्नं मे कतन्ति नन्दति , भीय्यो नन्दति सुगतिंगतः ॥ १८ ( इह नन्दत प्रेत्य नन्दति कृतपुण्य उभयत्रनन्दति । पुष्य' मे कृतमितिनन्दति, भूयो नन्दति सुगतिंगतः १८) अनुवाद-ऐं आनन्द्रित होता है, मरकर आनन्दित होता है। सिने पुण्य किया है, पर दोनों जगर आनन्दित होता है। "मैने पुष्प प्रिया –यह ( सोच ) आनन्द्रित होता १; मुगरियो प्राप्त हो और भी आनन्द्रित होता है।
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