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१० ] धम्मपदं [ १R० (अल्पामपि संहितां भाषमाणो धर्मस्य भवत्यनुधर्मचारी । रागं च दैवं च प्रहाय मोही सस्यशलानन् विमुकचितः अनुपादान इइ वSत्र वा; स भागवान् आसण्यस्य भवति ।२०) अनुवाद--चाहे अवषमात्र ही हिताका भाषण करे, किंतु यदि यह धमॅके अनुसार आचरण करनेवाळा हो, राग, वेप, और आइको त्यागकर, अच्छी प्रकार सचेत और अच्छी प्रकार सुक्कचित्त हो, यहाँ और बहाँ (दोनों जगह ) बटोरनैवाळा ग थे; (तो ) वह प्रमणपनका भागी होता है । १-यमकवर्ग समाप्त