३५] चितवन [ ७ बेप, मोह )के फन्दैसे निकलनेके लिए यह चित्त ( तडफडता है । आवस्ती कोई ३५-दुस्रिग्गहस्स लहुनो यत्य कामनिपातिनो । चित्तम्स द्वमयो साधु चित' दन्तं सुखावहं ॥। ३॥ (दुर्निग्रहस्य लशुनो यत्र-कामनिपातिनः। चित्तस्य दमनं साधु, वितं दान्त सुखावहम् ॥ ३ ॥ अनुबाद--( जो ) कठिनाईसे निग्रह थोग्य, शीघणामी, बह चाहता है यहाँ चछा खानेवाछा है, ( ऐसे ) चित्रका द्वासन करना उत्तम है, बसन किया गया चित्र सुखप्रल् होता है । कोई उत्कण्ठित भिक्षु ३६-सदुद्दसं सुनिपुणं यत्थ कामनिपातिनं । वित्त क्षेय्य मेघावी, वित्त गुती मुखावहं ॥४॥ ( सुदुशं सुनिपुणं यत्रकामनिपाति । चितं रक्षेत् मेधावी, चित्रों की सुखावहम् ॥ ४॥ अनुवाद-कठिनाइंसे जानने , अत्यन्त चालाक, जहाँ चाहे यहाँ के लानेवाळे चित्ती, बुद्धिमान् रक्षा करे, सु क्षित चित्त सुखप्रद होता है । सषराषिखत (थेर ) ३७-दूरङ्गमं एकचरं असरीरं हासयं । ये चित्त सब्बमेस्सन्ति मोक्खन्ति मारवन्धना ॥१॥ स्र
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