( ॥, ) ३। . स्वामी सरययैव परिव्राजक हिन्दी (खुद्धगीता ) ४, श्री विष्णुनारायण हिन्दी ( स० १९८५ ) ५ ॐ० भागा आदि उपाध्याय पाली-न्दी ( १९३२ ई० ) पाँच अनुबावोके होते हॅफी या आवश्यक्ता १--इसका उतर आप १डित यनारसीदास चतुषं और महायोधिसभाकं संनी ब्रह्मचारी दैवप्रियसे पूठ्यैि । मैंने यहुत ननुगच किया किन्तु उन्होंने एक नहीं सुनी। ९ फरवरीसे ८ मार्च तक से सुल्तानगंज ( भागलपुर )में "गंगा"के पुरातत्त्वांकके सम्पादनके लिये श्री धूपनाथ सिंहका अतिथि था। स्थानका काम ही म न था, वसपरसे वहाँ रहते वो लेख भी लिखने पढे । उसी समय इस अनुवाद में भी इस छगा दिया । जो अंश थाली रह गया था, उसे किताब को भेसमें बेनेझी याद समाप्त किया । इस तरह"ध्रुवचर्या"फी ऑति "धम्मपद"में भी जब्दीसे काम लिया गया है। इससे पुस्तकमें हैं। की गलियं महीं रद्दगई, यकि जीमें क्रिये अनुवादकी पुनराश्रुति न करनेसे अनुचाऽकी आपको और सरल नहीं यनया पा सका, इन त्रुटियों मैं स्वयं दोषी हैं। प्रथमैं पहिले यारीक टाइपमैं याई और उस स्थानको नास बिया है, जहाँ पर डक गाथा छुचुके मुखले निकली वाहिनी ओर उस व्यक्तिका नाम है, जिसके प्रति या विषयमें डक गाथा की गईं । धम्मपदी अट्टकथा(=ीका में हर एक गाथाका इतिहास भी दिया हुआ है; सक्षिप्त फरी उसे दोनेका विचार तो खखा, छेकिन सभयाभाव और मंथविस्तारते भयसे वैसा नहीं किया जा सका। सुतपिटक्कै आय १०० सूत्र, और विनयके कुछ आश्नको मैंने अपनी बुद्धचर्याम सुनुवादित किया है । भारतीय भाषाओंमें पाली प्रयोंका सबसे अधिक अनुवाद थगछमें हुआ है। जातकों
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