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पुटमेतत् सुपुष्टितम्
११
हिंदीटीकासहिता


 जो कदाचित् अति सूक्ष्म अतिवेगवाली और शीतल नाडी होवे तो वैद्यको जानना चाहिये कि इस रोगीकी आयुका क्षय हो चुका ॥४३॥

विद्युद्वद्रोगिणो नाड़ी दृश्यते न च दृश्यते ।
अकालविद्युत्पातेव स गच्छेद्यमसादनम् ॥४४॥

 जिस रोगीकी नाडी बिजलीकी तरह दीखे तथा अकालमें बिजली के पड़नेकी तरह नहीं दीखे, वह रोगी यमपुरको जाता है ४४॥

तिर्यगुष्णा च या नाडी सर्पगा वेगवत्तरा।
कफपूरितकंठस्य जीवितं तस्य दुर्लभम् ॥४५॥

 कफसे पूरित हुए कंठवाले मनुष्यकी नाड़ी तिरछी और गरम सर्पके समान चलनेवाली और अति वेगसे चलनेवाली होवे तिसका जीना दुर्लभ है ।।४५॥

चला चलितवेगा च नासिकाधारसंयुता।
शीतला दृश्यते या च याममध्ये च मृत्युदा ॥४६॥

 चलती हुई, चलित वेगवाली और नासिकाके आधारसे संयुत हुई शीतल नाड़ी दीखे तब एक प्रहरमें मृत्यु जानना ॥४६।।

शीघ्रा नाड़ी मलोपेता मध्याह्नऽग्निसमोज्वरः ।
दिनैकंजीवितंतस्य द्वितीयेऽह्निम्रियेति सः ॥४७॥

 जिसकी नाड़ी मलसे युक्त होके शीघ्र चले और मध्याह्नमें अग्निके समान ज्वर उपजे तिसका जीवना एक दिन है वह दूसरे दिन मर जाता है ॥४७॥

दृश्यते चरणे नाड़ी करे नेवाधिदृश्यते ।
मुखं विकासितं यस्य तं दूरं परिवर्जयेत् ॥४८॥

 जिसके चरणमें नाड़ी दीखे और हाथमें नहीं दीखे और खिला हुआ मुख होवे तिस रोगीको दूरसे वजें ॥४८॥

वातपित्तकफाश्चापि त्रयो यस्यां समाश्रिताः।
कृच्छसाध्यामसाध्यांवाप्राहुर्वैद्यविशारदाः ॥४९॥