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भाषाटीकास ०--अ० १.

फिर देहधात्रेयके शुभ अशुभ फलका ज्ञान होनेके वास्ते इस
होरा स्कंध शाखको व्यवहारकी सिद्धिके वास्ते कहते हैं ॥ ९ ॥

संज्ञा हुक्ताः समस्ताश्च सम्यग् ज्ञात्वा पृथक्पृथक् ।
शास्त्रोपनयनाध्यायो ग्रहचारोऽब्दलक्षणम् ॥ १०॥
तिथिर्वारश्च नक्षत्रं योगं तिथ्वृक्षसंज्ञकम् ॥
मुहूर्तोपग्रहोऽर्कस्य संक्रांतिर्गोचरस्तथा ॥ ११ ॥

इसमें अच्छे प्रकारसे अलग २ संज्ञा कही हैं शास्त्रोपनयनाध्याय
अर्थात् इस शास्त्रका अभिप्राय वर्णन, ग्रहचार वर्णन, संवत्सरोंका
फल,तिथी, वार,नक्षत्र, ओर तिथी तथा नक्षत्रसे शीघ्र हुआ योग,
इन्होंका विचारमुहूर्त प्रकरण, उपग्रह प्रकरण, सूर्य संक्रांति फल,
ग्रहगोचर, ॥ १० ॥ ११ ॥

चंद्रताराबलाध्यायः सर्वलग्नार्तवाह्वयः ।
आधानपुंससीमंता जातनामान्नभुक्तयः ॥ १२॥

चंद्र तारा बल देखनेका अध्याय, सब लग्नोंका विचार प्रथम
रजस्वलाका विचार आधान, पुंसवन, सीमंत, जातकर्म, नाम
करण अन्नप्राशन ॥ १२ ॥

चौलांकुरार्पणं मौंजीछुरिकाबंधनं क्रमात् ॥
समावर्तनवैवाहप्रतिष्टासद्मलक्षणम् ॥ १३ ॥

चौलकर्म, मंगलाकुरांर्पण, मौंजी बंधन, छुरिका बंधन ये
सब क्रमसे कहे हैं और समावर्त्तनकर्म विवाहकर्म प्रतिष्ठाकर्म,
घरोंका लक्षण, ॥ १३ ॥