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९४ ) नारदसंहिता । दुपहरपहले सक्रांति अर्क तो राजाओंको नष्टकरै मध्याह्नमें ब्राह्मणोंको तीसरे प्रहरमें वैश्योंको सायंकालमें शूद्रोंको प्रदोषसमयमें पिशाचोंको ।। ३ ।। निशि रात्रिचरान्नाद्यकारानपररात्रिके ॥ गोमाहिषेति संध्यायां लिंगिनो निशि संक्रमः ॥ ४ ॥ रात्रीमें राक्षसोंको आधीरात पीछे नाचनेवाले और तमासा करनेवालोंको पीड़ा करे आप्तःकाल संध्यामें अर्कें तो गोमहिष्या दिकोंको और उससेभी पीछे बिलकुल प्रभातसमय अर्कें तो सन्यासी आदिकोंको पीडा करें ॥ ४ ॥ दिवा चेन्मेषसंक्रांतिरनर्थकलहप्रदा ॥ रात्रौ सुभिक्षमतुलं संध्ययोर्वृष्टिनाशनम् ॥ ५॥ दिनमें मेषकी सक्रांति अर्के तो अशुभफल तथा प्रजामें बैरभाव करै रात्रिमें अकें तो अत्यंतसुभिक्ष हो दोनों संध्याओंमें अर्कें तो वर्षाका नाशकरै ॥ ५ ॥ हरिशार्दूलवाराहखरकुंजरमाहिषाः ॥ अधश्वजवृषाः पादायुधाःकरणवाहनाः ॥ ६ ॥ बव आदि जौनसा करण वर्त्तमान हो तिसके क्रमसे सिंहव्याघ वाराह गधा हस्ती जैसा अश्व धान बकरा वृष मुरगा ये वाहन कहे हैं यहां बवमें सिंह वाहन होता है और यह ११ करण यथा क्रमसे देख लेने ॥ ६ ॥ खशबाह्निकवंगेषु संक्रांतिर्धिष्ण्यवाहना ॥ अन्यदेशेषु तिथ्यर्द्धवाहना स्याद्ववादितः ॥ ७ ॥