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(९६) नारदसंहिता । आयुधं वाहनाहारो यज्जातीयजनस्य च ॥ स्वापोपविष्टतिष्ठंतस्ते लोकाः क्षयमाप्नुयुः ।। १२ ।। शस्त्र वाहन भोजन ये सब संक्रांतिके जिसजातिके जनके हो तथा सूती बैठी खडी जैसी हो तिसहीप्रकारके जनोंका व पदार्थोंका नाश हो ॥ १२ ॥ अन्धको मंदसंज्ञश्च मध्यसंज्ञः सुलोचनः । पर्यायाद्गणयेद्भानि रोहिण्यादि चतुर्विधम् ॥ १३ ॥ अंध, मंदलोचन, मध्यसंज्ञक, सुलोचन, इस प्रकार रोहिणी आदि नक्षत्रोंको क्रमसे जानना तहांचार २ नक्षत्रोंकी ७ आवृत्ति करलेनी रोहिणी अंधा मृगशिर मंदलोचन इत्यादि ।। १३ ।। स्थिरभेष्वर्कसंक्रांतिर्ज्ञेया विष्णुपदाह्वया ॥ षडशीतिमुखी ज्ञेया द्विस्वभावेषु राशिषु ।। १४ ।। वृष, सिंह, वृश्चिककुंभ, इन स्थिर राशियोंपर सूर्य संक्रांति होय तो विष्णुपदानामक संक्रांति जानना और मिथुन आदि द्विःस्वभावराशियों पर अर्क होय तब षडशीतिमुखी संक्रांति जानना ॥ १४ ॥ सौम्ययाम्यायने नूनं भवेतां मृगकर्किणोः । तुलाधराजयोर्ज्ञेयो विषुवत्सूर्यसंक्रमः ॥ १४॥ मकर की संक्रांति अर्कें तब उत्तरायण प्रवृत्त होताहै और कर्ककी संक्रांति अर्कें उस दिन दक्षिणायन प्रवृत्त होताहै और तुळ तथा मेषकी संक्रांति अर्के उस दिन विषुवत् अर्थात् दिनरात्रि समान काल होता है ॥ १५॥