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भाषाटीकास ०-अ० ११. ( ९७ } अहः संक्रमणे कृत्स्नं महापुण्यं प्रकीर्तितम् । रात्रौ संक्रमणे भानोर्व्यवस्था सर्वसंक्रमे । १६ ।। दिनमें संक्रांति अर्के तो सारे दिनमें महान् पुण्य कहाहै और रात्रि में संक्रति अर्के तो सब संक्रांतियोंमें व्यवस्था कहीहै ॥ १६ ॥ सूर्यस्योदयसंध्यायां यदि याम्यायनं भवेत् ।। तदोदयादहः पुण्यं पूर्वाहः परतो यदि ॥ १७ ॥ जैसे कि सूर्य उदय होनेकी संधिमें दक्षिणायन अर्थात् कर्ककी संक्रांति अर्के तो उदय होनेवाले दिनमेंही पुण्यकाल जानना और जो उदयकालकी संधिसे पहलेही संक्रांति अर्के तो पहलेही दिन पुण्यकाल है यह कर्ककी संक्रांतिकी व्यवस्थाहै ।।१७ ।। सूर्यास्तमनवेलायां यदि सौम्यायनं भवेत् ॥ तदोपेयादहः पुण्यं पराह्नः परतो यदि ॥ १८ ॥ और सूर्य के अस्तहोनेकी संधिमें मकरकी संक्रांति अर्के तो उसी दिन पुण्यकाल जानना संधिसे पीछे रात्रिमें अगलेदिनपुण्यकाल जानना ।। १८।। अर्थार्कस्तमनात्संध्यासंघटिकात्रयसंमिता ॥ तथैवार्धोदयात्प्रातर्घटिकात्रयसंमिता ॥ १९ ।। सूर्यका आधा मंडल अस्त हानेके बाद तीन घडीतक सायंसंध्या रहतीहै और आधा मंडल उदय होनेसे पहिले प्रातःकाल तीन घडी प्रभातकी संध्या कहीहै । १९ ॥ 1A