पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/१०५

एतत् पृष्ठम् परिष्कृतम् अस्ति

(९८) नारदसंहिता । प्रागर्धरात्रात्पूर्वाह्ने पूर्ववद्विष्णुपादयोः ॥ षडशीतिमुखी चैव परतश्चेत्परेऽहनि ॥ २० ॥ कर्क मकरकी संक्रांतिका यह पुण्यकाल जानना पूर्वोक्त विष्णुपदा नामक संक्रांति षडशीतिमुखी नामवाली संक्रांति आधीरातसे । पहिले दिन पुण्यकाल और आधीरात पीछे अर्के तो पिछले दिन पुण्यकाल जानना ।। २० ।। पश्चात्पराहः संक्रांतिः षडशीतिर्विपर्ययात् ॥ यादृशेनेंदुना भानोः संक्रांतिस्तादृशं फलम्॥ २१ ॥ नरः प्राप्नोति तद्राशौ शीतांशोः साध्वसाधु वा ॥ संक्रांतिग्रहणर्क्षे वा पूर्वभाद्गणनाक्रमः ॥२२॥ रवेरयन संक्रांतिस्तदा तद्राशिसंक्रमः॥ संक्रांतिग्रहणर्क्षे वा जन्मभावधि गण्यताम् ॥ २३ ॥ और षडशीति नामवाली संक्रांतिका पुण्यकाल इन विष्णु पदा नामवाली संक्रांतियोंसे विपर्यय जानना जैसा चंद्रमामें संक्रां ति अर्के वैसाही फल होताहै संक्रांति अर्कके दिन जिस मनुष्य को अच्छाचंद्रमा हो उसको श्रेष्ठ फल होता है । संक्रांति अर्के उस दिनसे पहले दिनके नक्षत्रसे गिननेका क्रम होताहै । सूर्यके अयनक्री संक्रांति व अन्य राशिी संक्रांति जिस दिन अर्के उसी दिनके नक्षत्रसे भी जन्मके नक्षत्रतक गिना जाता है अब इन दोनोंका फल कहतेहैं ॥ २१ ॥ २२ ॥ २३ ॥ नेष्टं त्रयं षट् च शुभं पर्यायाच्च पुनः पुनः । हानिर्वृद्धिः स्थानहानिस्तत्प्राप्तिर्भानुतः क्रमात् ॥२२॥