पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/१०६

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भाषाटीकास ०-अ० १२. १ (९९) पहिले तीन नक्षत्र शुभ नहीं हैं फिर छह नक्षत्र शुभदायक हैं पीछे ३ नक्षत्र हानिकारक, फिर ६ वृद्धि, फिर ३ स्थानहानि, फिर ३ नक्षत्र स्थानप्राप्ति करतेहैं ऐसे सूर्यसंक्रांति चंद्रनक्षत्रसे विचारी जातीहै ।। २४ ।। तिलोपरि लिखेच्चक्रे त्रिशूलं च त्रिकोणकम् ॥ तत्र हैमं विनिक्षिप्य दद्यात्तद्दोषशांतये ॥ २५॥ जो अशुभदायक संक्रांति हो तो उस दोषकी शांतिके वास्ते तिलके ऊपर चक्र लिख त्रिकोण त्रिशूल लिखकर तिसपर सुवर्ण रखकर तिसका दान करे ॥ २५ ॥ ताराबलेन शीतांशुर्बलवांस्तद्वशाद्रविः॥ ससंक्रमणतस्तद्वद्वशाखेटबलाधिकः ॥ २६ ॥ इति श्रीनारदीयसंहि० संक्रातिलक्षणाध्याय एकादशः ११॥ ताराके बलसे चंद्रमा बलवान है और चंद्रमाके बलसे सूर्य बल वान होता है और वह सूर्य संक्रांतिके बलसे अन्यग्रहोंका बल पाकर बलवान् है ॥ २६ ॥ इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां संक्रातिलक्षणाध्याय एकादशः ॥ ११ ॥ मease see , अथ गोचराध्यायः। शुभोर्को जन्मतख्यायदशषट्सु न विध्यते ॥ जन्मतो नवपंचांबुव्ययगैर्यर्किभिस्तदा ॥ १॥ जन्मराशिसे ३ । ११ । १० । ६ इन स्थानोंपर सूर्य हो तो शुभहै परन्तु जन्मराशीसे ९ । ५। ४ । १२ इन स्था-