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(१०० ) नारदसंहिता। नोंमें कोई यह नहीं हो तो वेध नहीं होता अर्थात् ३ सूर्य शुभहै। परन्तु ९ स्थानमें अन्य कोई ग्रह होय तो वेध होजाताहै ११ शुभहै पूरु ५ में कोई ग्रह नहीं होना चाहिये। १० सूर्यहो तब ४ स्थान और ६ सूर्य हो तब जन्मराशिसे १२ स्थानमें कोई ग्रह नहीं होना चाहिये। यदि इन स्थानोंपर शनि विना कोई ग्रह होवेगा तो सूर्यवेध होजायगा फिर शुभफल नहीं रहेगा ऐसे इन बेधके सबही स्थानों का यथाक्रम लगा लेना । इसी प्रकार चंद्र आदि ग्रहोंकोभी कहते हैं ॥ १ ॥ विध्यते जन्मतो नेंदुर्द्यूनाद्यायारिखत्रिषु । खेष्वष्टांत्यांबुधर्मस्थैर्विबुधैर्जन्मतः शुभः ॥ २॥ जन्म राशिसे ७।१।११। ६ । १० । ३ इन स्थानोंपर चंद्रमा वेध नहीं करताहै याने शुभहै परंतु जन्मराशिसे २।५। ८। १२ । ४ । ९ इन स्थानों पर बुध विना अन्य कोई ग्रह नहीं होना चाहिये। बुध चंद्रमाका पुत्र है इसलिये वेध नहीं करतौहै। इन वेधके स्थानोंका परस्पर यथाक्रम देखलेना चाहिये ।। २ ।। त्र्याऽऽयारेषु कुजः श्रेष्ठो जन्मराशेर्न विध्यते ॥ व्ययेष्वर्कग्रहे साररप्यसूर्य्र्येण जन्मतः ॥ ३ ॥ और ३। ११ । ६ । इन स्थानोंपर मंगल श्रेष्ठ है वेध नहीं करता है परंतु १२ । ५।९ इनस्थानोंपैर कोई ग्रह नहीं होना चाहिये और इस मंगल के ही समान शनिका फल जानना परंतु शनिके उक्तस्थानोंमें सूर्य वेध नहीं करताहै । ३ ।