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भाषाटीकास०-अ० १ ३. (१०३ ) विषम कहिये अशुभस्थानमें ग्रह स्थित हो तो यत्नसे उन्होंकी शांति करानी चाहिये । हानि तथा वृद्धि ग्रहोंके अधीनहै इसलिये ग्रह सदा पूजने चाहियें ॥ १२ ॥ मणिमुक्ताफलं विद्रुमाख्यं गारुत्मकाह्वयम् । पुष्परागं त्वथो वज्रं नीलगोमेदसंज्ञकम् । वैडूर्ये भास्करादीनां तुष्टयै धार्ये यथाक्रमम् ।। १३ ॥ इति श्रीनारदीयसंहितायां गोचराध्यायो द्वादशः।।१२।। माणिक्य, मोती, मूंगा, गारुत्मक ( हरीजातका रन ) पुषराज, हीरा, नीलमणि ( लहसुनियां) गोमेद, वैडूर्य ये रत्न यथाक्रम धारण करनेसे सूर्य आदि ग्रहोंकी प्रसन्नता होतीहै ।। १३ ॥ इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां गोचराध्यायो द्वादशः।।१२। शुक्लपक्षादिदिवसे चंद्रो यस्य शुभप्रदः । स पक्षस्तस्य शुभदः कृष्णपक्षोऽन्यथा शुभः॥ १॥ शुक्लपक्षादिदिनोंमें जिसके चंद्रमा बसयान् होता है वह पक्ष उसको शुभदायक होता है और कृष्णपक्ष अन्यथा शुभहै अर्थात कृष्णपक्षमें ताराबल देखना शुभहे ।। १॥ शुक्लपक्षे शुभश्चंद्रो द्वितीयनवपंचके ॥ रिपुमृत्यंबुसंस्थश्च न विद्धो गगनेचरैः ॥ २ ॥ शुक्लपक्षमें दूसरा नवमां पांचवाँ चंद्रमा शुभहै परंतु छठे आठवें चौथे कोई ग्रह नहीं होना चाहिये अर्थात् जन्मराशिसे इन स्थानों में बुध बिना कोई ग्रह होय तो चंद्रमाका वेध हो जाताहै ।। २ ।। ।