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भाषाटीकास ०-अ० १४. (१०९ ) ' & ४४ ॥ -

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और वृष, मिथुन, कर्क, कन्या, मीन, तुला, धनुष ये लग्न शुभदायक हैं, क्योंकि ये शुभग्रहोंके स्थान हैं और अन्य लग्न पापग्रहोंकी राशि हैं ॥ १३ ॥ क्षीणेंद्वर्कार्किभूपुत्राः पापाः स्युः संयुतो बुधः ॥ पूर्णचंद्रबुधाचार्यशुक्रस्तेस्युः शुभग्रहाः ॥ १४ ॥ क्षीणचंद्रमा, सूर्य, शनि, मंगल ये पापग्रह हैं और इनके साथ होनेसे बुध भी अशुभ है और पूर्ण चंद्र,बुध,बृहस्पति,शुक्र ये शुभग्रह हैं ।। १४ ॥ ऊ,६ ३, ;*) *३८ ६ ६ ३३ सौम्योग्रं तेषां राशीनां प्रकृत्येव फलं भवेत् ॥ योगेन सौम्यपापैश्च खचरैर्वीक्षितेन वा ॥ १८ ॥ तिन राशियोंका योग होनेसे शुभ अशुभ फल स्वभावसे ही होजाता है और शुभ अशुभ ग्रहोंकी दृष्टिहानेसे भी शुभाऽशुभ फल होता है। १५ ॥ सौम्याश्रितत्वात्क्रूरो वा स राशिः शोभनः स्मृतः ॥ सौम्योपि राशिः क्रूरः स्यात्क्रूरग्रहयुतो यदि ॥ १६ ॥ जिसपर शुभग्रह स्थित होय वह क्रूरराशि होय तो भी शुभदा यक जाननी और क्रूरग्रहसे युक्त होय तो शुभराशि भी क्रूर जाननी ॥ १६ ॥ ग्रहयोगावलोकाभ्यां शशी धत्ते ग्रहोद्भवम् । फलं ताभ्यां विहीनोसौ स्वं भावमुपसर्पति ॥ १७ ॥