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(११२) नारदसंहिता । रुग्णा पतिव्रता दुःखी पुत्रिणी भोगभागिनी ॥ पतिप्रिया क्लेशयुक्ता सूर्यवारादिषु क्रमात् ॥ २ ॥ अमावस्या, रिक्ता, अष्टमी, षष्ठी, द्वादशी, प्रतिपदा ये तिथि, परिघयोगका पूर्वार्ध व्यतीपात,वैधृति, सायंकाळ, दिग्दाह, भद्रा ऐसे समयमें प्रथम रजस्वला होय तो अशुभफल जानना और रविवार आदि जिसबारेमें पहिले रजस्वला होय उसका फल यथाक्रमसे ऐसे जानना कि रोगवारी १ पतिव्रता २ दुःखिनी ३ पुत्रिणी ४ भोगभोगिनी ५ पतिप्रिया ६ क्लेशसे संयुक्त ७ ऐसे ये फल सूर्यादिवरोंके जानने ॥ १ ॥ २ ॥ श्रीयुक्ता सुभगा पुत्रवती सौख्यान्विता स्थिरा ॥ मानी कुलाधिका नारी चाश्विन्यां प्रथमार्तवा ॥ ३ ॥ अश्विनी नक्षत्रमें प्रथम रजस्वला होय तो श्रीयुक्त, सुभगा पुत्रवती सौख्यसे युक्त स्थिर,मानवाली कुलमें अधिक पृथ होती है ।। ३ ।। दुःशीला स्वैरिणी वंध्या गर्भपातनतत्परा । परप्रेष्या कवंध्या भरण्यां प्रथमार्तव ॥ ४ ॥ और दुष्टस्वभाववाली, व्यभिचारिणी, वंध्या, गर्भपात करनेमें तत्पर,दामी,काकवंध्या यह भरणी नक्षत्रमें प्रथम रजस्वलाके फल पैं अन्यथा पुंश्चली वंध्या गर्भपातनतत्परा । वेश्या मृतप्रजा चापि वह्निभे प्रथमार्तवा ॥ ४॥ व्यभिचारिणी, वंध्या, गर्भपातमें तत्पर, वेश्या, मृतवत्सा यह फल कृत्तिका नक्षत्रमें जानना ॥ ५ ॥