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भाषाटीकास ०-अं० २. (५) ५ होती हैं और चैत्रशुक्ल प्रतिपदाको जो { वार होता है वह वर्षका । राजा कहलाता है ॥ १ ॥ मेषसंक्रांतिवारेशो भवेत्सोऽपि च भूपतिः । कर्कटस्य तु वारेशो सस्येशस्तत्फलं ततः ॥ २ ॥ और मेषकी संक्रांतिको जो वार होवे वह सेनापति होताहै कई की संक्रांतिको जो वार हो वह सस्यपति होताहै ।। २ ॥ तुलासंक्रांतिवारेशो रसानामधिपः स्मृतः । मकराधिपतिः साक्षान्नीरसस्य पतिः क्रमात् ॥ ३ ॥ तुलाकी संक्रांतिका वार रसेश होता है और मकरकी संक्रांति का जो वार होवे बह नीरसेश अर्थात् सुवर्ण आदि धातु ओंका तथा वस्त्रादिकोंका पति होता है ॥ ३ ॥ अब्देश्वरश्चमूपो वा सस्येशो वा दिवाकरः॥ तस्मिन्नब्दे नृपक्रोधः स्वल्पसस्यार्घवृष्टिकृत् ॥ ४ ॥ वर्षपति (राजा ) वा सेनापति ( मंत्री ) अथवा सस्येश सूर्य हो तो उस वर्षमें राजओंको क्रोध रहे थोडी खेती हो अन्नका भाव महंगा रहे वर्षा थोडी होवे ॥ ४ ॥ अब्देश्वरश्चमूपो वा सस्येशो वा निशाकरः ॥ तस्मिन्नब्दे करोतिक्ष्मां पूर्णा शालिफलेक्षुभिः ॥५॥ वर्षपति वा सेनापति तथा सस्यपति चंद्रमा होय तो उसवर्ष में गेहूं चाँवल आदि धान्य तथा ईख आदि से भरपूर पृथ्वी होवे ॥ ५ ॥