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(११४) नारदसंहिता । K पतिप्रिया पुत्रवती मानभोगवती शुभा । सुकर्मनिरता दक्षा तिष्यर्क्षे प्रथमार्तवा ॥ १० ॥ पतिसे प्यार रखनेवाली, पुत्रवती,मान भोगवाली,शुभ,सुंदर कर्म में . तत्पर रहनेवाली, चतुर यह फ़ल पुष्य नक्षत्रमें प्रथम रजस्वला होनेका है ।। १० ।।। परभर्तुरता प्रेष्या कोपिनी निर्गुणालसा ॥ मृषावादी च दुष्पुत्रा भौजंगे प्रथमार्तवा ॥ ११ ॥ ज़ो स्त्री पहली बार आश्लेषा नक्षत्रमें रजस्वला होय वह परपुरु षसे रमण करनेवाली, दाप्ती, क्रोधवाली , दयारहित,आलस्यसहित, झूठ बोलनेवाली, दुष्ट संतानवाली होती है । । ११ ।। । निर्दे्वेर्ष्या रोगसंयुक्ता सर्वदाज्ञा च लोलुपा ॥ पितृवेश्मरता मान्या पैतृभे प्रथमार्तवा ॥ १२ ॥ वैररहित, रोगवाली, सदा अज्ञानवाली, लोभसे संयुक्त, पिताके घरमें मोहरखनेवाली मानवती यह फल मघा नक्षत्रमें प्रथम रजस्वला होनेका है ॥ १२ ॥ परकार्यरता दीना दुष्पुत्रा कृशभागिनी ॥ मलिनी कर्कशा कुद्धा भाग्यभे प्रथमार्तवा ॥ १३ ॥ पराये काममें रत, दीन,दुष्टपुत्रोंवाली, क्लेशभागिनी, मलिन, कर्कशा, क्रोधवाली यह फल पूर्वफल्गुनीमें प्रथम रजस्वला होने का है ।। १ ३ ॥ प्रजावती धर्मरता निर्वैरा मित्रपूजिता । सती मित्रगृहे सत्कार्यमर्क्षे तु रजस्वला ॥ १४ ॥