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A (११६) नारदसंहिता । स्वामिपक्षार्चिता सौख्यगुणैः सम्यग्विभूषिता ॥ सुपुत्रा शुभदा कांता मित्रर्क्षे प्रथमाएर्तवा ॥ १९ ॥ पतिके कुलसे पूजित, सुखदायक गुणोंकरके विभषित, सुंदर पुत्र पतिवाली यह अनुराधा नक्षत्रका फल जानना ॥ १९ ॥ दुश्चरित्ररता क्लेशिन्यार्तवा पुंश्चली व्यसुः ॥ दुःसंतानवती ज्येष्ठा नक्षत्रे प्रथमार्तवा ॥ २० ॥ दुष्ट चरित्रमें रत, दुःखी, पैराकी बीमारीवाली, व्यभिचारिणी, बलरहित, दुष्ट संतानवाली, ऐसी स्त्री प्रथम ज्येष्ठा नक्षत्रमें रजस्वला होनेसे होती है ॥ २० ॥ संतानार्थगुणैरन्यैर्युक्तान्यक्लेशमोचिनी ॥ स्वकर्मनिरता नित्यं मूलभे प्रथमार्तवा ॥ २१ ॥ संतान धन गुणसे युक्त तथा अन्य गुणोंसे युक्त, और अन्य जनोके दुःखको दूर करनेवाली, अपने कर्ममें तत्पर, यह मूल नक्ष त्रका फल जानना ॥ २१ ।। प्रच्छन्नपापा दुष्पुत्रा प्राणिहिंसनतत्परा । अजस्रव्यसनासक्ता तोयभे प्रथमार्तवा ॥ २२ ॥ गुप्त पाप करनेवाली, दुष्ट संतानवाली, प्राणियोंकी हिंसा करने वाली, निरंतर व्यसनमें आसक्त, ऐसी स्त्री पूर्वाषाढमें प्रथम रजस्वला हानेसे होतीहै ॥ २२ ॥ कार्याकार्येषु कुशला सदा धर्मानुवर्तिनी ॥ गुणाश्रया भोगवती विश्वभे प्रथमार्तवा ॥ २३ ॥ K+