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भाषाटीकास ०-अ० १५. .(११७ ) १ कार्य अकार्यंमें निपुण, सदा धर्ममें रहनेवाली, गुणोंकी खानि, भोगवती यह उत्तराषाढका फल है ॥ २३ ॥ धनधान्यवती भोगपुत्रपौत्रसमन्विता ।। कुलानुमोदिनी मान्या विष्णुभे प्रथमार्तया ॥ २४ ॥ धन धान्यवती, भोग पुत्र पौत्र इन्होंके सुखवाली, कुलको प्रसन्न रखनेवाली, मान्य यह फल श्रवण नक्षत्रका है ॥ २४ ॥ पुत्रपौत्रान्विता भोगधनधान्यवती सती। स्वकर्मनिरता मान्या वसुभे प्रथमार्तवा ॥ २९॥ पुत्र पौत्रोंवाली, भोग धन धान्यवाली, अपने कार्यमें निपुण, मान्य यह फल धनिष्ठा नक्षत्रका है ।। २५ ।। बहुपुत्रा धनवती स्वकर्मनिरता सती ॥ कुलानुमोदिनी मान्या वारुणे प्रथमार्तवा॥ २६ ॥ बहुत पुत्रोंवाली, धनवती, अपने काममें निपुण, पतिव्रता, कुलको प्रसन्न करनेवाली, मान्य यह फल प्रथम शतभिषा नक्षत्रमें रजस्वला होनेका है ॥ २६ ॥ बंधकी बंधुविद्वेष्या नित्यं दुष्टरता खला । शिल्पकार्येषु कुशलाऽजांध्रीभे प्रथमार्तवा ॥ २७ ॥ व्यभिचारिणी, बंधुओंसे विद्वेष करनेवाली, हमेशः दुष्टज नोंमें रत, दुष्टं, शिल्पकार्थमें निपुण यह फल पूर्वाभाद्रपदमें जानने ॥ २७॥ आढ्या पुत्रवती मान्या सुप्रसन्ना पतिप्रिया ।। बंधुपूज्या धर्मवत्यहिर्बुध्न्ये प्रथमार्तवा ॥ २८ ॥