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(११८) नारदसंहिता । धनाढ्या, पुत्रवती, मान्या, सुंदर प्रसन्न, पतिसे प्यार रखनेवाली, बंधुओंसे पूज्या, धर्मवाली यह उत्तराभाद्रपदका फल है ॥ २८ ॥ दृढव्रता धर्मवती पुत्रसौख्यार्थसंयुता ॥ विशाखागुणसंपन्ना पौष्णभे प्रथमार्तवा ॥ २९ ॥ और जो स्त्री प्रथम रेवती नक्षत्रमें रजस्वला हो वह दृढव्र- तवाली, धर्मवती, पुत्र धन सुख इन्होंसे युक्त और विशाखा नक्षत्रमें कहे हुये गुणसे युक्त होती है ॥ २९ ॥ कुलीरवृषचापांत्यनृयुक्कन्यातुलाधराः ॥ राशयः शुभदा ज्ञेया नारीणां प्रथमार्तवे ॥ ३० ॥ स्त्रियोंके प्रथम रजस्वला होनेमें कर्क, वृष, धन मीन, मिथुन, कन्या, तुला ये राशि अर्थात् लग्न शुभ कहे हैं.॥ ३० ॥ तिथ्यर्क्षवारानिंद्याश्चेत्सेककर्म न कारयेत् । दोषाधिक्ये गुणाल्पत्वे तथापि न च कारयेत् ॥ ३१ ॥ जो तिथिवार नक्षत्र निंदित होवें और दोष अधिक तथा गुण अल्प होवें तो अभिषेक कर्म नहीं करना चाहिये ॥ ३३ ॥ दोषाल्पत्वे गुणाधिक्ये सेककर्म समापयेत् । निंद्यर्क्षे तिथिवारेषु यत्र पुष्पं प्रदृश्यते ।। ३२ ॥ तत्र शांतिः प्रकर्तव्या घृतदूर्वातिलाक्षतैः । प्रत्येकमष्टशतं च गायत्र्या जुहुयात्ततः ॥ ३३ ॥ और दोष थोडेंहो गुण अधिक होवें तब - अभिषेक कर्म करना चाहिये। निंदित नक्षत्र और निंदित तिथि वार होवें तो घृत,