पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/१२६

एतत् पृष्ठम् परिष्कृतम् अस्ति

आषाटीकास०-अ० १६. (११९) दूब, तिल, अक्षत इन्हों करके अष्टोत्तरशत १०८गायत्री मंत्रसे होम करे औरपहिले जपकरवाके शांति करे ॥ ३२ ॥ ३३ ॥ स्वर्णगोतिलान्दद्यात्सर्वदोषापनुत्तये । भर्ता तस्यापि गमनं वर्जयेद्रक्तदर्शनात् ॥ ३४ ॥ इति श्रीनारदीयसंहितायां प्रथमार्तवाध्यायः पञ्चदशः१३ सुवर्ण, गौं, भूमि, तिल इन्होंका दान करे तब सब दोष शांत होते हैं । रजस्वला होवे तव तिसके पतिने भी स्त्रीत्याग करना चाहिये ।। ३४ ॥ इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां प्रथमार्त्तवाध्यायः पंचदशः ।। १५ ।। ace:Pages रजोदर्शनतोऽस्पृष्टा नार्यो दिनचतुष्टयम् । ततः शुद्धक्रियावैताः सर्ववर्णेष्वयं विधिः॥ १ ॥ रजस्वला होनेके बाद चार दिन स्त्री स्पर्श करने योग्य नहीं रहतीहै फिर शुद्ध होतीहै सब वर्णो में यही विधिहै ॥ १॥ ओजराश्यंशगे चंद्रे लग्ने पुंग्रहवीक्षिते ॥ उपवीती युग्मतिथौ सुस्नातां कामयोस्त्रियम् ॥ २ ॥ चंद्रमा, मेष, मिथुन आदि विषमराशिके नवांशकमें स्थितहो। ओर लग्न भी विषम राशिके नवांशकमें स्थित हो और पुरुष ग्रहोंकी दृष्टिसे युक्त हो तब युग्मतिथि विषे शुद्धस्नान कर चुकी हुई स्त्रीको सव्य हुआ पुरुष प्राप्त होवै ॥ २ ।।