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भाषाटीकास ०-अ० १३८. (१२१ ) गर्भसे विषम मासमें अथवा तीसरे महीनेमें पुंसवनकर्म तथा सीमंतकर्म करना चाहिये ।। १ ॥ इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां पुंसवनाध्यायः सप्तदशः ३७ चतुर्थे मासि षष्ठे वाप्यष्टमे वा तदीश्वरे । बलसंपन्नदंपत्योर्चंद्रताराबलान्विते ॥ १॥ चौथे महीनेमें, अथवा छठे महीनेमें, तथा आठवें महीनेमें अष्टम मासपति ग्रह बलयुक्त होय और स्त्रीपुरुषको चंद्रताराका पर्ण बल होय तब ।। ३ ।। अरिक्तानपर्वदिवसे कुजजीवार्कवासरे ॥ तीक्ष्णमिश्रोग्रवर्जेषु पुंसंज्ञभांशके शशी ॥ २ ॥ रिक्ता, अमावस्या, पूर्णिमा, मंगल, बृहस्पति, रवि, तीक्ष्ण, मिश्र, उग्रं इन संज्ञाओंवाले नक्षत्र, इन सबोंको वर्जकर पुरुषसंज्ञक राशि के नवांशकपर चंद्रमा स्थित होय ॥ २ ॥ शुद्धेऽष्टमे जन्मलग्नात्तयोर्लग्नेन नैधने ॥ शुभग्रहयुते दृष्टे पापखेटयुतेक्षिते ॥ ३ ॥ लग्नकी तथा अष्टमस्थानकी शुद्धि होवे इन दोनों स्थानोंपर शुभग्रहोंकी दृष्टि हो और पापग्रहोंकी दृष्टि नहीं होवे ।। ३ ।। मासेष्टके चतुर्भिर्वा दृष्टके बीजपूरकैः । स्त्रीणां तु प्रथमे गर्भे सीमंतोन्नयनं शुभम् ॥ ४ ॥ आठवां महीना हो तथा बलवीर्यको पूर्ण करनेवाले चार ग्रहों करके सूर्यं दृष्ट होवे तब स्त्रीयोंका प्रथम गर्भविषे सीमंतकर्म वरना शुभ है ।। ४ ॥