पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/१३

एतत् पृष्ठम् परिष्कृतम् अस्ति

(६) नारदसहिता। अब्देश्वरश्वमूपो वा सस्येशो वा महीसुतः॥ तस्मिन्नब्दे चौरवह्निवृष्टिक्षुद्भयकृत्सदा ॥ ६॥ जो राजा व मंत्री तथा सस्यपति मंगल होय तो उस वर्षमें चोर तथा अग्निका भयहो वर्षा नहींहो दुर्भिक्षहो ॥ ६ ॥ अब्देश्वरश्श्वमूपो वा सस्येशो वा शशांकजः ॥ अतिवायं स्वरुपवृष्टिं करोति नृपविग्रहम् ॥ ७ ॥ राजा व मंत्री तथा सस्यपति बुध होतो अत्यन्त पवन चले थोड़ी वर्षाहो राजाओंका युद्ध होवे ॥ ७ ॥ अब्देश्वरश्चमूपो वा सस्येशो वा सुरार्चितः॥ करोत्यनुत्तमां धात्रीं यज्ञधान्यार्थवृष्टिभिः ॥ ८॥ जो राजा व मंत्री तथा सस्यपति बृहस्पति होय तो यज्ञ धान्य द्रव्य वर्षा, इन्हों करके पृथ्वी परिपूर्ण होवे ॥ ८॥ अब्देश्वरश्चमूपो वा सस्येशे वा भृगोः सुतः । करोतेि सर्वां संपूर्णां धात्रीं शालिफलेक्षुभिः ॥ ९॥ जो राजा व मंत्री तथा सस्यपति शुक्र होय तो चावल धान्य ईख आदिसे भरपूर पृथ्वी हो ॥ ९ ॥ अब्देश्वरश्वमूपो वा सस्येशो वार्कनंदनः॥ अंतकश्चौरवह्यबुधान्यभूपभयप्रदः ॥ १० ॥ जो राजा व मंत्री तथा नरपति वा सस्यपतिशनि होय तो दुर्भिक्ष हो चोर अग्नि जल धान्य राजा इन्होंका भय होय ॥ १० ॥ ज्ञात्वा बलाबलं सम्यग्वदेत्फलनिरूपणम् ॥ दंडाकारेऽर्कवेधे वा ध्वांक्षाकारेऽथ कीलके ॥ ११ ॥