पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/१३१

एतत् पृष्ठम् परिष्कृतम् अस्ति

K १२४ ) नारदसंहिता । अथ नवान्नप्राशनम् । षष्ठमास्यष्टमे वापि पुंसां स्त्रीणां तु पंचमे । सप्तमे मासि वा कार्यं नवान्नप्राशनं शुभम् ॥ १ ॥ छठे महीनेमें अथवा आठवें महीनेमें पुरुषको ( पुत्रोंको ) प्रथम अन्न खिलाना प्रारंभ करें और कन्याओंको प्रथम, पांचवें तथा सातवें महीनेमें अन्न खिलाना चाहिये ।। १ ॥ रिक्तां दिनक्षयं नंदां द्वादशीमष्टमीममाम् । त्यक्त्वान्यतिथयः श्रेष्ठाः प्राशने शुभवासरे ॥ २॥ रिक्तातिथि, तिथिक्षय, नंदातिथि, द्वादशी, अष्टमी, अमावस्या इनको त्यागकर अन्यतिथि और शुभवार अन्न प्राशनमें शुभ दायक हैं ।। २ ।। चरस्थिरमृदुक्षिप्रनक्षत्रे शुभनैधने ॥ दशमे शुद्धिसंयुक्ते शुभलग्ने शुभांशके ॥ ३ ॥ चर, स्थिर, मृदु, क्षिप्रसंज्ञक नक्षत्रोंमें और लग्नसे अष्टमस्थान तथा दशमस्थानकी शुद्धि होनेमे शुभलग्न और शुभराशिका नवां- शक होनेमें । ३ ॥ पूर्वाह्ने सौम्यखेटेन संयुक्ते वीक्षितेपि वा । त्रिषष्टलाभगैः क्रूरैः केंद्रधीधर्मगैः शुभैः ॥ ६ ॥ पूर्वाह्न ( दुपहरा पहिला ) लग्न शुभग्रहसे दृष्ट हो अथवा युक्त ५ ।३।६। ११ इन स्थानोंमें क्रूरग्रह होवें और केंद्र, पाँचव, नवमें स्थानमें शुभग्र हों तब॥ ५ ॥ R =