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भाषाटीकास ०-अ० २४. ( १३१ ) शुक्लपक्षमें द्वितीया, तृतीया, पंचमी, त्रयोदशी, दशमी, सप्तमी ये तिथि यज्ञोपवीत करानेमें शुभ कही हैं और एकादशी षष्ठी, द्वादशी, ये मध्यमातिथि कही हैं। कृष्णपक्षमें एक चतुर्थी तो त्याज्य है और तिथि पंचमीतक मध्यम हैं । पंचमीसे आगे अन्य तिथि अत्यंत निंदित जाननी । हस्त आदि तीन नक्षत्र रेवती, पुष्य, आर्द्रा, पुनर्वसु तीनों उत्तरा ॥ ८ ॥ ९ ॥ १० ॥ विष्णुत्रयाश्वमित्राजयोनिभान्युपनायने । जन्मभाद्दशमं कर्म संघातीर्क्षं च षोडशम् ॥ ११ ॥ श्रवण आदि तीन नक्षत्र, अश्विनी, अनुराधा, पूर्वाभाद्रपदा ये नक्षत्र उपनयन संस्कारमें शुभ कहे हैं। जन्म नक्षत्र दशवाँ व सो लहवाँ नक्षत्र कर्मसंघात ऋक्ष कहा है । ३१ । अष्टादशं सामुदायं त्रयोविंशं विनाशनम् ॥ मानसं पंचविंशर्क्षे नाचरेच्छुभमेव तु ॥ १२ ॥ अठारहवाँ नक्षत्र सामुदाय है, तेईसवाँ विनाशन है, पचीसवाँ नक्षत्र मानस संज्ञक है इन नक्षत्रोंमें किंचित् भी शुभकर्मे नहीं करना चाहिये ॥ १२ ॥ आचार्यसौम्यकाव्यानां वाराः शस्ताः शशीनयोः ॥ वारौ तौ मध्यफलदावितरौ निंदितौ व्रते ॥ १३ ॥ गुरु, बुध, शुक्र ये वार शुभदायक हैं, चंद्र, रविवार मध्यम हैं अन्य चार उपनयन संस्कारमें निंदित कहे हैं ॥ १३ ॥ त्रिधा विभज्य दिवसं तत्रादौ कर्म दैविकम् ॥ द्वितीये मानुषं कार्यं तृतीयांशे च पैतृकम् ॥ १४ ॥ । ।