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भाषाटीकास ०-अ० २. ( ७ ) दृष्टेऽर्कमंडले व्याधिर्भीतिश्चौरार्थनाशनम् ॥ छत्रध्वजपताकाद्यैराकरैस्तिमिरैर्धनैः ॥ १२॥ रविमंडलगैर्धूमैः स्फुलिगैर्जननाशनम् ॥ सितरक्तैः पीतकृष्णैस्तैर्मिणैर्विप्रपूर्वकान् ॥ १३ ॥ ऐसे संपूर्ण बलबळ देखकर संवत्सरका फल कहना चाहिये अब सूर्यचार फल कहते हैं कि दंडके आकार काग तथा कीलाके आकार सूर्यमें बेध दीख पड़े तो पीड़ा भय चोर द्रव्यनाश ये उपद्रव होवें और छत्र ध्वजा पताका आदि अंधकार दीख पड़े सूर्य मंडलमें धँवा सरीखा दीखे अग्निके किणके दीखें तो मनुष्योंका नाश हो सफेद लाल पीली काली मिली हुई ऐसी सूर्यकी किरण दीखें तो यथाक्रमसे ब्रह्मण आदिोंका नाश हो ॥११॥१२॥१३ हंति द्वित्रिचतुर्भिर्वा राज्ञोऽन्यजन संक्षयः ॥ ऊर्धैर्वेभानुकरैस्ताम्रैर्नाशं याति स भूपतिः ॥ १४ ॥ और दो तीन चार वर्णकी मिली हुई किरण दीखे तो राजाओंका नाश हो अन्य प्रकार कुछ दुष्ट चिह्न होवे तो प्रजाका नाश हो तांबासरीखा वर्णवाली सूर्यकी किरण ऊपको फैली हुई हो तो राजाका नाश हो ॥ १४ ॥ पीतैर्नृपसुतः श्वेतैः पुरोधाश्चित्रितैर्जनाः॥ धूमैर्नृपः पिशंगैश्चजलदोऽधोमुखैस्तथा ॥ १९॥ पीलावर्णं हो तो राजाके पुत्रका नाश, सफेद हो तो राजाका पुरोहित नष्टहोय अनेक वर्णोंकी मिलीहुई हो तो प्रजानाश हो और धूम्र