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(१३४ } नारदसंहिता । तस्माच्छुभांशगे चंद्रे व्रती विद्याविशारदः। पापोऽष्टगे स्वांशगे वा दरिद्रो नित्यदुखितः ॥ २२ ॥ इसीलिये शुभराशिके नवांशकमें चंद्रमा हो तो व्रतीजन विद्यामें निपुण हो और पापग्रह अष्टमस्थानमें हो तथा अपनी राशिके नवांशकमें हो तो दरिद्री नित्य दुःखी हवे ।। २२ ।। श्रवणादितिनक्षत्रे कर्क्यशस्थे निशाकरे । सदा व्रती वेदशास्त्रधनधान्यसमृद्धिमान् ॥ २३ ॥ श्रवण तथा पुष्य नक्षत्र हो, कर्क शशिके नवांशकपर चंद्रमा स्थित हो तब उपनयन संस्कार करानेवाला बालक वेदशास्त्र धनधान्यकी समृद्धिवाला होता है ।। २३ ।। शुभलग्ने शुभांशे च नैधने शुद्धिसंयुते ॥ लग्ने त्वनैधने सौम्यैः संयुक्ते वा निरीक्षिते ॥ २४ ॥ शुभलग्ने शुभराशिका नवांशक हो आठवें घर कोई लग्नमें शुभग्रह स्थित हो अथवा शुभग्रहोंकी दृष्टि हो ।। २४ ।। दृष्टैर्जीवार्कचंद्रद्यैः पंचभिर्बलिभिर्ग्रहैः । स्थानादिबलसंपूर्णैश्चतुर्भिर्वा समन्वितैः ॥ २४ ॥ बृहस्पति, सूर्य, चंद्रमा इत्यादि पांच अहोंसे दृष्ट शुभस्थान होवें अथवा पंचम आदि स्थानोंमें चार बली शुभग्रह स्थित होवें।२५। ईक्षिते वा चैकविंशन्महादोषविवर्जिते । राशयः सकलाः श्रेष्ठाः शुभग्रहयुतेक्षिताः ॥ २६ ॥ अथवा शुरु चार ग्रहोंसे दृष्ट लग्न होवे और २१ इक्कीस महा दोष जो ग्रंथांतरोंमें तथा इसी ग्रंथमें आगे कहे हैं । पंचागशुद्धिका