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भाषाटीकास ०-अ० २४. ( १३५) अभाव १ उदयास्त शुद्धिका अभाव २ सूर्य संक्रांति ३ पाप षड्वर्ग ४ गंडांत ५ कर्त्तरीयोग ६ इत्यादि हैं ये नहीं होने चाहियें और शुभग्रहोंसे युक्त तथा दृष्ट संपूर्ण राशि श्रेष्ठ कही हैं ।। २६ ।। शुभा नवांशाश्च तथा गृह्यास्ते शुभराशयः । पापग्रहस्य लग्नांशः शुभेक्षितयुतोपि वा ॥ २७ ॥ और जिनमें शुभराशिके नवांशक आगये हों वे राशी ग्रहण करने योग्य शुभ हैं और पाप ग्रहके लग्नका नवांशक शुभग्रहसे दृष्ट तथा युक्त होय तो शुभ है । । २७ ॥ तस्माद्रोमिथुनांत्याश्च तुलाकन्यांशकाः शुभाः । एवंविधे लग्नगते नवांशे व्रतमीरितम् ॥ २८ ॥ इसलिये वृष, मिथुन, मीनतुला, कन्या इन राशियोंके नवां शक शुभ हैं ऐसे उनमें अथवा नवांशकमें यज्ञोपवीत कराना शुभ है॥ २८ ॥ त्रिषडायगतैः पापैः षडष्टांत्यविवर्जितैः । शुभैः षष्ठाष्टलग्नत्यवर्जितेन हिमांशुना ॥ २९॥ पापग्रह ३ । ६ । ११ घरमें हों और शुभग्रह ६।८ । १२ इन घरोंमें नहीं हों और ६ । ८ लग्नमें चंद्रमा नहीं हो ॥ २९ स्वोच्चसंस्थोपि शीतांशुव्रतिनो यदि लग्नगः ।। तं करोति शिशुं निःस्वं सततं क्षयरोगिणम् ॥ ३० ॥ उच्चराशिका भी चंद्रमा लग्नमें होय तो उपनयन संस्कारवाले बालकको निरंतर दरिद्री और क्षयी रोगयुक्त करता है ।। ३० ॥ ।