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( ३ ३६ ) नारदसंहिता । स्फूर्जितं केंद्रगे भानौ व्रतिनो वंशनाशनम् ॥ कूजितं केंद्रगे भौमे शिष्याचार्यविनाशनम् ॥ ३१ ॥ केंद्रमें सूर्य होवे तब उपनयन संस्कार होनेसमय मेघगर्ज पडे तो वंशका नाश होताहै और मंगलकेंद्रमें होय ऐसे लग्नमें उपनयनसमय पक्षियोंके कूजनेका शब्द होय तो शिष्य और आचार्य का नाश हो ॥ ३१ ॥ करोति रुदितं केंद्रसंस्थे मंदेऽतुलान् गदान् ॥ लग्नात्केंद्रगते राहौ रंध्रे मातृविनाशनम् ॥ ३२ ॥ उग्रकेंद्रगते केतौ तातवित्तविनाशनम् ॥ पंचदोषैर्युतं लग्नं शुभदं नोपनायने ॥ ३३ ॥ और केंद्रमें शनि होवे ऐसे समयमें रोनेको शब्द सुनजाय तो अत्यंत रोग हो । लग्नसे केंद्रमें विशेष करके ७ में राहु होय तो माताको नष्ट करै, उग्र केंद्रमें केतु होय तो पिताको और धनको नष्ट करै इन पांच दोषोंसे युक्त लग्न उपनयन संस्कारमें शुभ नहीं है । ३२ ॥ ३३ ॥ विना वसंतऋतुना कृष्णपक्षे गलग्रहे । अनाध्यायोपनीतश्च पुनः संस्कारमर्हति ॥ ३९ ॥ वसंततुके विना कृष्णपक्षमें तथा गलग्रह योगमें उपनयन् किया जाय तो फिर संस्कार करनेके योग्यहै अर्थात इन योगमें संस्कार नहीं कराना ॥ ३४ ॥