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(१३८) नारदसंहिता । तिन शुभ ग्रहोंकी राशिका लग्न हो और कर्त्ताकी जन्भराशिसे आठवें कोई ग्रह नहीं हो तथा वर्तमान लग्नसे आठवें कोई ग्रह नहीं हो लग्नसे ६।८। १२ इन घरोंमें चंद्रमा नहीं हो। ३ ।। धनत्रिकोणकेंद्रस्थैः शुभैख्यायारिगैः परैः छुरिकाबंधनं कार्यमर्चयित्वामरान्पितृन् ॥ ४ ॥ धन, त्रिकोण (९ । ५ ) केंद्र इन स्थानोंमें शुभ ग्रह होवें और ३ । ११ । ६ इनमें पाप ग्रह होवे ऐसे मुहूर्तमें देवता तथा पितरोंका पूजन कर छुरिकाबंधन (कटारी बांधनां )शुभ है ।। ४ ॥ अर्चयेच्छुरिकां सम्यग्देवतानां च सन्निधौ ॥ ततः सुलग्ने बध्नीयात्कट्यां लक्षणसंयुताम् ॥ ४९ ॥ देवताओंकी मूर्तियोंके सन्मुख छुरिका ( कटारी ) का पूजन करें फिर अच्छे लग्नमें अच्छे लक्षणवाली छुरिका ( खङ्ग ) को कटिकै बांधना चाहिये ॥ ५ ॥ तस्यास्तु लक्षणं वक्ष्ये यदुक्तं ब्रह्मणा पुरा । संमितं छुरिकायामविस्तारेणैव ताडयेत् ॥ ६ ॥ अब जो पहिले ब्रह्माजीने कहा है ऐसा खङ्गका लक्षण कहतेहैं। खङ्गकी लंबाईके बराबरके निशानेको उस नवीन खङ्गसे ताडित करे ।। ६ ।। भाजितं गजसंख्यैश्च ह्यंगुलीः परिकल्पयेत् । आयामार्द्धाग्रविस्तारप्रमाणेनैव छेदयेत् ॥ ७ ॥ फिर उस लंबे चिह्नमें आठका भाग दे अंगुल कल्पित करैं अर्थात् अंगुलोंसे नांपकर आठसे कम तक रहैं इतने चिह्नको ग्रहण