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भाषाटीकास ०-अ० २७, ( ३४१ ) चित्र, तीनों उत्तरा, पुनर्वसु, पुष्य, रेवती, श्रवण, अनुराधा, मृगशिर आदि तीन नक्षत्र, रवि, चंद्र, बृहस्पति, शुक्र, बुध इन वारोंविषे और इनहीकी राशियोंके लग्न तथा नवांशकों विषे अथवा यात्राके नक्षत्र वार लग्न नवांशकों विषे समावर्तन कम करना चाहिये और प्रतिपदा, संपूण रिक्तातिथि, अमावस्या, सप्तमी आदि तीनदिन इनको त्यागकर समावर्तन कर्म करना चाहिये ( गृहस्थाश्रममें प्राप्त होना चाहिये) ॥ २ ॥ ३ ॥ ४॥ इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां समावर्त्तना ध्यायः षड्विंशतितमः ॥ २६ ॥ सर्वाश्रमाणामाश्रेयो गृहस्थाश्रम उत्तमः ।। यतःसोऽपि च योषायां शीलवत्यां स्थितस्ततः ॥ १॥ संपूर्ण आश्रमोंका आश्रयरूप गृहस्थाश्रम कहाहै वह गृहस्था श्रम भी अच्छी शीलवितीस्त्रीके आश्रयास्थित रहता है ।। १ ।। तस्यास्तच्छीललब्धिस्तु सुलग्नवशतः खलु । पितामहोक्तां संवीक्ष्य लग्नशुद्धिं प्रवच्म्यहम् ॥ २॥ और तिस स्रीके शील स्वभावकी प्राप्ति अच्छे लग्नके प्रभावसे होतीहै इसलिये मैं ब्रह्माजीसे कहीहुई लग्नशुद्धिको कहताहूं।२।। पुण्येह्नि लक्षणोपेतं सुखासीनं सुचेतसम् ॥ प्रणम्य देववत्पृच्छेदैवज्ञं भक्तिपूर्वकम् ॥ ३ ॥ पवित्र शुभदिनविषे सुंदर लक्षणोंसे युक्त सुखपूर्वक स्वस्थ चित्तसे बैठेहुए जोतिषीको भक्तिपूर्वक प्रणाम कर देवताकी तरह सत्कार करके पूंछे. ॥ ३ ॥