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( १४२ ) नारदसंहिता । तांबूलफलपुष्पाद्यैः पूर्णाजलिरुपाग्रतः ॥ कर्ता निवेद्य दंपत्योर्जन्मराशिं स जन्मभम् ॥ ४ ॥ तांबूल, फल, पुष्प आदिकोंसे हाथोंको पूणकर (भेंट चढ़ाकर) वह पृच्छक वरकन्याओंके जन्मके नक्षत्रको और जन्मकी राशि को उस ज्योतिषीके आगे बतलादेवे ३ ४ ॥ पृच्छकस्य भवेल्लग्नादिंदुः षष्टाष्टकोपि वा ॥ दंपत्योर्मरणं वाच्यमष्टमक्षौतरे यदि ॥ ९॥ तहां प्रश्नसमयके लग्नसे छठे आठवें स्थानपर चंद्रमा हो अथवा उनके नक्षत्रसे आठवें नक्षत्रपर होय तो स्त्रीपुरुषोंका (वर कन्याओंका ) मरण होगा ऐसा कहना चाहिये ॥ ५ ॥ यदि लग्नगतञ्चंद्रस्तस्मात्सप्तमगः कुजः ॥ विज्ञेयं भर्तृमरणं त्वष्टमेब्दे न संशयः॥ ६॥ जो चंद्रमा प्रश्नलग्नमें हो और तिस चंद्रमासे सातवें स्थानपर मंगल हो तो आठवें वर्षमें निश्चय पतिका मरण होता है ॥ ६ ।। लग्नात्पंचमगः पापः शत्रुदृष्टः स्वनीचगः ॥ मृतपुत्रा तु सा कन्या कुलटा न तु संशयः ॥ ७ ॥ लभसे पांचवें स्थान पापग्रह शत्रुग्रहसे दृष्ट तथा अपनी नीचराशिपर स्थित हो तो वह कन्या मृतवत्सा हो और व्यभिचारिणी हो इसमें संदेह नहीं ।। ७ ।। तृतीयपंचसप्तायकर्मगश्च निशाकरः॥ लग्नात्करोति संबंधं दंपत्योर्गुरुवीक्षितः ॥ । ८ ॥ ।