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भाषाटीकास ०-अ० २९: . ( १४७ ) नरस्तंगते सिते जीवे न तयोर्बालवृद्धयोः । न गरौ सिंहराशिस्थे सिंहांशकगतेपि वा ॥ ४ ॥ बृहस्पति व शुक्रके अस्त होनेमें तथा तिन्होंकी बाल और वृद्ध अवस्था होनेके समय और सिंहके बृहस्पतिविषे अथवा सिंह राशीके नवांशमें बृहस्पति होवे तत्र भी ये विवाहादिक नहीं करने चाहिये ।। ४ ।। पश्चात् प्रागुदितः शुक्रः पंचसप्तदितं शिशुः । अस्तकाले तु वृद्धत्वं तद्वद्देवगुरोरपि ॥ ६ ॥ पूर्वमें तथा पश्चिममें शुक्र उदय हो तब सात दिन तथा पांच दिन बाल संज्ञक रहता है और अस्त कालसे पांच सात दिन पहले वृद्ध संज्ञा होजाती है तैसेही बृहस्पति की संज्ञा जाननी चाहिये ॥ ५ ॥ अप्रबुद्धो हृषीकेशो यावत्तावन्न मंगलम् । उत्सवे वासुदेवस्य दिवसे नान्यमंगलम् ॥ ६ ॥ ॥ जबतक देव नहीं उठे तबतक मंगल कार्य नहीं करना और देख उठनी एकादशीको विवाहादि मंगल करना शुभदायक नहीहै।६।। न जन्ममासे जन्मर्क्षे न जन्मदिवसेपि च ॥ नाधगर्भसुतस्याथ दुहितुर्वा करग्रहम् ॥ ७ i. प्रथम संतान ( जेठी संतान ) का विवाह जन्ममास तथा जन्मनक्षत्र तथा जन्मतिथि विषे नहीं करना चाहिये ।। ७ ॥ । नैवोद्वाहो ज्येष्ठपुत्रीपुत्रयोश्चपरस्परम् । ज्यैष्ठमासजयोरेकज्यैष्ठे मासे हि नान्यथा ॥ ८ ॥