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• (१४८) नारदसंहिता ।। ज्येष्ठ वर और जेठी संतानकी कन्या इन दोनों तथा ज्येष्ठमासमें उत्पन्न हुए वरकन्याओंका विवाह ज्येष्ठमासमें नहीं करना चाहिये ॥ ८ ।। उत्पातग्रहणादूर्ध्वै सप्ताहमखिलग्रहे । नाखिले त्रिदिनं चर्क्ष तदा नेष्टमृतुत्रयम् ॥ ९ ॥ व्रजपात आदि उत्पात तथा सर्व ग्रहणके अनंतर सात दिन तक विवाहादि मंगलकार्य करना शुभ नहीं है। सर्व ग्रहण नहीं हो तो तीन दिन पीछेतक और ऋतुकालके उत्पातमें भी तीन दिन पीछेतक शुद्ध कार्यों नहीं करना ॥ ९ ॥ ग्रस्तास्ते त्रिदिनं पूर्वं पश्चात् ग्रस्तोदये तथा ॥ संध्याकाले त्रित्रिदिनं निःशेषे सप्तसप्त च ॥ १० ॥ ग्रस्तास्त ग्रहणसे पहले तीन दिन और ग्रस्तोदय ग्रह्णसे पीछे तीन दिन और संध्याकालमें उत्पात होय तो तीन २ दिन बाकी सर्व दिनमें सात २ दिन वर्जित जानो ॥ १० ॥ । मासांते पंचदिवसांस्त्यजेद्रिक्तां तथाष्टमीम् ॥ षष्ठीं च परिघाद्यर्द्धं व्यतीपातं सवैधृतिम् ॥ ११ ॥ मासांतमे पांच दिन, रिक्ता तिथि, अष्टमी षष्ठी परिघ योग के आदिका आधा भाग वैधृति, व्यतीपात संपूर्ण, इनको विवाहदिके संपूर्ण कार्यों में वर्ज देखे ॥ ११ ॥ पौष्णभत्र्युत्तरामैत्रमरुचंद्रार्कपैतृभम्॥ समूलभं विधेर्भे च स्त्रीकरग्रह इष्यते ॥ १२ ॥