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भाषाटीकास०-अ० २९. ( १४९ ) 8 A रेवती, तीन उत्तरा, अनुराधा, स्वाति, मृगशिर, हस्त,मघा, रोहिणी, मूल इन नक्षत्रोंमें विवाह करना चाहिये ॥ १२ ॥ । विवाहे बलमावश्यं दंपत्योर्गुरुसूर्ययोः ।। तत्पूज़ा यत्नतः कार्यो दुष्फलप्रदयोस्तयोः ॥ १३ ॥ विवहमें वर कन्याको सूर्य बृहस्पति बल अवश्य देखना चाहिये और ज़ो ये अशुभ फलदायक हों तो यत्न करके इन्हेोंकी पूजा अवश्य करनी चाहिये ॥ १३ ॥ गोचरं व वेधजं चाष्टवर्गरूपजं बलम् । यथोत्तरं बलाधिक्यं स्थूलं गोचरमार्गजम् ॥ १४ ॥ गोचर बल, वेधरहितका बल, अष्टवर्गबल ये सब बल यथोत्तर क्रममे बलाधिक्य हैं और गोचर मार्गमे स्थूल बल है । १४ ।। चंद्रताराबलं वीक्ष्य ग्रहपश्वागजं बलम् । तिथिरेकगुणा वारो द्विगुणस्त्रिगुणं च भम् ॥ १९॥ चंद्र ताराबल, ग्रहबल, पशुके शकुनका बल तथा अंगस्फुरण काभी बल कहा है । तिथि एकगुणा बल करती है, वार दुगुना बल ओर नक्षत्र तिगुना बल करता हैं ॥ १५ ॥ योगश्चतुर्गुणः पंचगुणं तिथ्यर्धसंज्ञकम्॥ ततो मुहूर्त्तों बलवाँस्ततो लग्नं बलाधिकम् ॥ १६ ॥ योग चार गुना, तिथ्यर्द्ध (करण ) पांचगुना बूल करता है, जिससे अधिक दुघड़िया मुहूर्त, तिससे अधिक बली लग्न है ॥१६॥ ततोतिबलिनी होरा द्रेष्काणोतिबली ततः ॥ ततो नवांशो बलवान् द्वादशांशो बली ततः ।। १७ ।।