पृष्ठम्:नारदसंहिता.pdf/१५७

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{१५० ) नारदसंहिता । तिससे बली होरा, तिससे बली द्रेष्काण है, द्रेष्काणसे बली नवांशक है, नवांशकसे बली द्वादशांश है ॥ १७ ॥ त्रिंशांशो बलवांस्तस्मांद्वीक्ष्यते तद्वलाबलम् । शुभयुक्तेक्षिताः शस्ता विवाहेऽखिलराशयः ॥ १८ ॥ द्वादशांशसे बली त्रिंशांश है, ऐसे बलाबल विचारना चाहिये विवाहमें संपूर्ण राशि शुभग्रहोंसे युक्त और दृष्ट होनेसे शुभदायक होती हैं ॥ १८ ॥ चंद्रार्केज्यादयः पंच यस्य राशेस्तु खेचराः॥ इष्टास्तच्छुभदं लग्नं चत्वारोपि बलान्विताः ॥ १९ ॥ चंद्रमा, सूर्य, बृहस्पति आदि पांच ग्रह जिस राशिंके स्वामी हैं, वह लग्न शुभदायक है, और बलान्वित हुए चार ग्रह शुभ होनें वहभी लग्न शुभ दायक है ॥ १९ ॥ जामित्रशुद्धयेकविंशन्महादोषविवर्जितम् । एकविंशतिदोषाणां नामरूपफलानि च ॥ २० ॥ पितामहोक्तान्यावीक्ष्य वक्ष्ये तानि समासतः । पंचांगशुद्धिरहितो दोषस्त्वाद्यः प्रकीर्तितः ॥ २१ ॥ यामित्र दोषकी शुद्धि करना और इक्कीस महादोषोंको वर्ज इक्कीस दोषोंके नाम रूप फलको बलाजीसे कहे हुएको पमात्रसे कहते हैं। पँचांगशुद्धि नहीं होना यह प्रथम ॥ २ ० ॥ २६ ॥