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भाषाटीकास ०-अ० २९, ( १५१ ) R = उद्यास्तशुद्धिहीनो द्वितीयः सूर्यसंक्रमः । तृतीयः पापषड्वर्गो भृगुः षष्ठे कुजोष्टमे ॥ २२ ॥ गंडांतकर्तरीरिःफषडष्टेंदुश्च संग्रहः ॥ दंपत्योरष्टमं लग्नं राशिर्विषघटीभवः ॥ २३ ॥ दुर्मुहूर्तों वारदोषः खार्जुरीकः समांघ्रिजः ॥ ग्रहणोत्पातभं क्रूरविद्धर्क्ष क्रूरसंयुतम् ॥ २४ ॥ कुनवांशो महापातो वैधृतिश्चैकविंशतिः ॥ तिथिवारर्क्षयोगानां करणस्य च मेलनम् ॥ २५॥ पंचांगमस्य संशुद्धिः पंचांगं समुदाहृतम् । यस्मिन्पंचांगदोषोस्ति तस्मिल्लग्नं निरर्थकम् ॥ २६ ॥ १ 8A उदयास्तशुद्धिहीन यह दूसरा दोष है सूर्यसंक्रम ३, पाप षड्वर्ग ४, छठे घर शुक्र हो यह ५दोष है।आठवें मंगल हो यह ६ दोष है गंडांत दोष७कुर्त्तरी योग ८, और १२/६।८ इन घरोंमें चंद्रमा हो यह ९, दोष है और स्त्रीपुरुषका अष्टमलग्न१०,संग्रह दोष ११, राशिदोष १२विषघट १३, दुष्ट मुहूर्त १४, वारदोष१५ खार्जुरीक समांघ्रिज अर्थात् एकार्गल दोष १६, ग्रहणनक्षत्र तथा उत्पातका नक्षत्र १७पापग्रहवेध१८,पापग्रहयुक्त१९, दुष्टनवांशक २०वैधृति तथा व्यतीपात ये२१ इक्कीस महादोष कहे हैं तहां तिथी १ वार २ नक्षत्र ३ योग ४ करण ५ इन्होंका मेल करना इन्होंकी शुद्धि देखना यह पंचांग कहता है। जिसमें पंचांगदोष हो उस दिन विवाह लग्न करना निरर्थक है * यह एक पंचांग दोषका