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भाषाटीकास -अ० २९ . ( १५३ ) - ४

त्रिंशद्भागात्मकं लग्नं होरा तस्यार्धमुच्यते ॥ लग्नत्रिभागो द्रेष्काणो नवमांशे नवांशकः॥ ३० ॥ लग्न तीस अंशका होता है तिसका आधा भाग (१५ अंश) को होरा कहते हैं । लग्नके तीसरे भागकी द्रेष्काण संज्ञा है लग्नके नवमांशको नवांशक कहते हैं ।। ३० ।। द्वादशांशो द्वादशांशः त्रिंशांशस्त्रिंशदंशकः ॥ सिंहस्याधिपतिर्भानुश्चंद्र कर्कटकेश्वरः॥ ३१ ॥ बारहवें अंश करलेनेको द्वादशांश, त्रिंशांश तीसवेही अंशका होता है इनके देखनेकी विधि आगे चक्रमें स्पष्ट लिखते हैं । सिंहका स्वामी सूर्य और कर्कका स्वामी चंद्रमा है । ३१ ।। मेषवृश्चिकयोर्भौमः कन्यामिथुनयोर्बुधः । धनुर्मीनद्वयोर्मैत्री शुक्रो वृषतुलेश्वरः ॥ ३२ ॥ मेष और वृश्चिकका मालिक मंगल है, कन्या और मिथुनका स्वामी बुध, धनु और मीनका स्वामी बृहस्पति, वृष और तुलाका स्वामी शुक्र है ।। ३२ ।। शनिर्मकरकुंभेश इत्येते राशिनायकाः॥ होरेनविध्वोरोजराशौ समभे चंद्रसूर्ययोः ॥ ३३ ॥ मकर कुंभका स्वामी शनिहै ऐसे ये राशियोंके स्वामी कहे हैं तहाँ। विषम राशिमें पहले १५ अंशतक सूर्यकी होरा, पीछे चंद्रमाकी होरा और समराशिमें पहले चंद्रमाकी पीछे सूर्यकी होरा होतीहै ३३