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(१५४ ) नारदसंहिता । होराचक्रम् । विषमराशि मे. मि. सिं. | तु. ध. कुं . १५ | १५ | १५ | १५ | १५ | १५ ३० ३० ३० | ३० | ३० | ३० समराशिः वृ कर्क कन्या ) वृश्चि. म. मी. १५ | १५ | १५ | १५ | १५ | १५ वें, वं. ३० ३० ३० \ ३० १ ३० ३० स्.) सु.सू . — } सु . शू . [ स्युर्द्रेष्काणे लग्नपंचनंदराशीश्वराः क्रमात् । आरभ्य लग्नराशेस्तु द्वादशाशेश्वराः क्रमात् ॥ राशिके १० अंशतक लग्नस्वामी फिर २० अंशतक लग्नसे ४ घरका स्वामी फिर ३० अंशतक लग्नसे ९ घरके स्वांमीका द्रेष्का- ण होता है ऐसा क्रम जानना.और लग्न राशिसे लेकर द्वादशांश् अर्थात् २॥ अंशका पति ग्रह यथाक्रमसे जानना जैसे मेषमें २॥ अंशतक मंगलका फिर५अंशतक शुक्लका द्वादशांश है ।।३४।।