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का ( १५६ ) नारदसंहिता । के क्रमसे विपर्यय होते हैं अर्थात् शुक्र, बुध, गुरु, शनि, मंगल ये त्रिंशांशपति होते हैं ।। ३ — जो ह = ! • ¥ ॐ # E = E ई ी है | 3 t i te ; 2 & d •x { ॐ
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भृगुः श्रेष्टाह्वयो दोषो लग्नात्षष्ठगते सिते ॥ उच्चगे शुभसंयुक्ते तल्लग्नं सर्वदा त्यजेत् ॥ ३६ ॥