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भाषाटीकास ०-अ० २९. . (१५७ ) लग्नसे छठे स्थान राहु होवे वह भृगु षष्ठाह्वयनामक दोष होता है वह लग्न उच्चग्रहसे युक्त तथा शुभग्रहसे युक्त हो तो भी सर्वथा त्याग देना चाहिये ॥ ३६ ।। कुजाष्टमे महादोषो लग्नादष्टमग कुजे ॥ शुभत्रययुतं लग्नं त्यजेत्तुंगगते यदि ॥३७॥ लग्नसे आठवें स्थान मंगल हो वहभी महादोष कहा है वह लग्न तीन शुभग्रहोंसे युक्त तथा उच्चग्रहसे युक्त हो तो भी त्याग देना चाहिये ॥ ३७ ॥ पूर्णानंदाख्ययोस्तिथ्योः संधिर्नाडीद्वयं सदा ॥ गंडांतं मृत्युदं जन्म यात्रोद्वाहव्रतादिषु ॥ ३८ ॥ पूर्णा नंदा इन तिथियोंकी संधिमें दो घड़ी अर्थात् पूर्णिमाके अंतकी एक घडी और प्रतिपदाकी आदिकी १ घडी गंडांत कही है वह जन्म, यात्राविवाह आदिकोमें मृत्युदायक जाननी पंचमी आदि सब पूर्णा और संपूर्ण नंदा तिथियोकी घटी जानलेनी॥ ३८३ कुलीरसिंहयोः कीटचापयोर्मीनमेषयोः । गंडान्तमंतरालं स्याद्धटिकार्धं मृतिप्रदम्।। ३९ ।। और कर्क, सिंह, वृश्चिक, धन, मीन, मेष इन लग्नोंकी संधिकी गंडांत संज्ञक जाननी वहभी मृत्युकारक हैं ॥ ३९ ॥ सार्पेन्द्रपौष्णभेष्वंत्यं नाडीयुग्मं तथैव च ॥ तदग्रभेष्वाद्यपादभानां गंडांतसंज्ञिकाः४० ॥