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4 - (१५८) नारदसंहिता । और आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती इन्होंके अंतकी दो बडी और इन से अगले नक्षत्रोंके प्रथमचरणोंकी दो घडी ऐसे ये नक्षत्रोंकी ४ घडी गंडांत संज्ञक हैं ।। ४० ।। उग्रं च संवित्रितयं गंडांतद्वितयं महत् । मृत्युप्रदं जन्मयानविवाहस्थापनादिषु ॥ ११ ॥ ऐसे यह तीन प्रकारका गंडांत दारुण खराब है जन्म, यात्रा, विवाह इन्होंमें अशुभ कहा है । । ४१ ।। “लग्नस्य पृष्ठाग्रगयोरसध्वोः सा कर्तरी स्याः दृजुवक्रगत्योः । तावेव शीघ्रं यदि वक्रचारोौ नो कर्तरीति न्यगदन्मुनींद्रः ॥ ४२ ॥ लग्नसे बारहवें स्थान् मार्गी कोई क्रूर ग्रह होवे और दूसरे स्थानमें वक्रगतिवाला कोई क्रूरग्रह होय तो कर्त्तरी नामक अशुn योग होता है यदि वे दोनों ग्रह शीघ्र गतिवाले तथा वक्रगतिही होवें तो कर्त्तरी योग नहीं होता ऐसा यह वसिष्ठ जी मुनिका मत है ।। ४२ ।। । लग्नाभिमुखयोः पार्श्वग्रहयोरुभयस्थयोः । सा कर्त्तरीति विज्ञेया दंपत्योर्मुतिकर्त्तरी ॥ ४३ ॥ लग्नसे आगे पीछे दोनों बराबरोंमें पापग्रह होवें वह कर्त्तरीयोग है स्त्रीपुरुषकी मृत्यु करता है । ४३ ॥ अपि सौम्यग्रहैर्युक्तं गुणैः सर्वैः समन्वितम् । व्ययाष्टरिपुगे चंद्रे लग्नदोषः स संज्ञितः ॥ ४४ ॥ और सौम्य ग्रहोंसे युक्त तथा सब गुणोंसे युक्त लग्न हो भी • 2