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भाषाटीकास ०-अ० २९.. ( ३५९) कर्त्तरी योगंमें विवाह नहीं करना और १२।८।६ चंद्रमा हो तो भी लग्नमें दोष कहा है ।। ४४ ।। तल्लग्गं वर्जयेद्यत्नाज्जीवशुक्रसमन्वितम् । उच्चगे नीचगे वापि मित्रगे शत्रुराशिगे ॥ ४५॥ वह लग्न बृहस्पति शुक्रसे युक्त होय तो भी यत्नसे वर्ज देना चाहिये उच्चका हो अथवा नीच ग्रहसे युक्त मित्रराशीका अथवा शत्रुराशिका कैसाही चंद्र हो परंतु इन स्थानोंमें वर्ज "देना चहिये ॥ ४५{ * ***,७३४१३२६ ४ ३४४४ अपि सर्वगुणोपेतं दंपत्योर्निधनप्रदम् । शशांकेे पापसंयुक्ते दोषः संग्रहसंज्ञकः ॥ ४६ ॥ जो सब गुणोंसे युक्त लग्न हो तोभी स्त्री पुरुषोंकी मृत्यु करता है और चंद्रमा पापग्रहोंसे युक्त हो वह संग्रह दोष कहा है।

४६ ॥

तस्मिन्संग्रहदोषे तद्विवाहं नैव कारयेत् ॥ सूर्येण संयुते चंद्रे दारिद्यं भवति ध्रुवम् ॥ ४७ ॥ तिस संग्रह दोषमें विवाह नहीं करना सूर्यके साथ चंद्रमा हो तो निश्चय दारिद्र हो ॥ ४७ ।।। कुजेन मरणं व्याधिर्बुधेन त्वनपत्यता ॥ दौर्भाग्यं गुरुणा चैव सापत्न्यं भार्गवेन तु ॥ ७८॥ मंगळका साथ हो तो मरण वा रोग,बुध साथ हो तो संतान नहीं हो,बृहस्पतिका साथ हो ते दुर्भाग्य, शुक्रका साथ हो तो शत्रुका । दुःख हो ॥ ४८ ॥