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भाषाटीकास ०-अ० २९. ( १६५) अनुक्ताः स्वल्पदोषाः स्युर्विद्युन्नीहारवृष्टयः । प्रत्यर्कपरिवेषेंद्रचापांबुघनगर्जनम् ॥ ७२ ॥ और बिजली पडना, बर्फ ओले पडना इत्यादिकं विना कहे हुए स्वल्प दोष हैं तथा सूर्यके सन्मुख बादलमें दूसरा सूर्य देखना, मंडळ, मेघ गर्जना, इंद्रधनुष ॥ ७२ ।। एवमाद्यस्ततस्तेषां व्यवस्था क्रियतेऽधुना॥ अकाले संभवंत्येते विद्युन्नीहारवृष्टयः ॥ ७३ ॥ प्रत्यर्कपरिवेषेंद्रचापाभ्रघनयोर्यदि । दोषाय मंगले नूनमदोषायैव कालजाः ॥ ७४ ॥ इयादि दोष हैं उनकी व्यवस्था करते हैं ये बिजली आदि उसात, धमर पडना, दूसरा सूर्य तथा सूर्यके मंडळ दीखना इंद्र धनुष दीखना, मेघ गर्जना ये उत्पात वर्षाकालके विना अकालमें होवें तो विवाहादिक मंगलमें निश्चय दोष है और कालमें होवें तो कुछ दोष नहीं है ॥ ७३ ।। ७४ ॥ बृहस्पातिः केंद्रगतः शुक्रो वा यदि वा बुधः ॥ एकोपि दोषविलयं करोत्येवं सुशोभनम् ॥ ७६ ॥ बृहस्पति अथवा शुक्र,बुध, एक भी कोई केंद्रमें होय तो अनेक दोषोंको नष्ट करता है शुभ फल होता है ॥ ७५ ॥ तिर्येंक्पंचोर्द्धगाः पंच रेखे द्वेद्वे च कोणयोः ॥ द्वितीयं शंभुकोणेग्निभचक्रं तत्र विन्यसेत् ॥ ७६ ॥ +