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( १६६ ) नारंदसंहिता पाँच रेखा तिरछी और पांच रेखा ऊपरको खींचे दो दो रेखा कोणोंमें खींचनी फिर ईशानकोणमें जो दो रेखा हैं तहां कृत्तिका नक्षत्र धरना और सभी नक्षत्र यथा क्रमसे लिखने ।। ७६ ।। भान्यतः साभिजित्येकरेखा खेटेन विद्धभम् । पुरतः पृष्ठतोर्काद्या दिनर्क्षे लत्तयंति च ॥ ७७ ॥ अभिजित सहित संपूर्ण नक्षत्र लिखने पीछे एक रेखापर दो ग्रहोंके नक्षत्र आजायें वह वैध होताहै ऐसा यह वेधदोष कहाहै । और सूर्य आदि ग्रह आगेके तथा पीछेके नक्षत्रको ताडित करते हैं वह लत्तादोष होता है उसका क्रम कहते हैं ।। ७७ ।। ज्ञराहुपूर्णेन्दुसिताः स्वपृष्ठे भं सप्तगोजातिशरैर्मितं हि ॥ संलत्तयन्तेर्कशनीज्यभौमा सूर्याष्टतर्काग्नि मितं पुरस्तात् ॥ ७८ ॥ बुध,राहु,पूर्ण चंद्रमा,शुक्र ये,अपने पीछेके नक्षत्रोंको यथाक्रमसे सातवां, नवमां, बाईसवाँ, पांचवां नक्षत्रको ताडित करतेहैं जैसे अश्विनीपरं राहु हो तो आश्लेषाको ताडित करेगा और सूर्य शनि बृहस्पति मंगल ये आगेके नक्षत्रको यथाक्रमसे १२।८।६ ।३ इनको ताडित करेंगे । जैसे सूर्य अश्विनीपर हो तो अपने आगे के चारहवें नक्षत्र उत्तराफाल्गुनीको ताडित करेगा शनि ८ को ताडित करेगा ऐसे यथाक्रम जानो ॥ ७८॥ सौराष्ट्रशाल्वदेशेषु लत्तितं भं विवर्जयेत् । कलिंगवंगदेशेषु पातितं भमुपग्रहम् ॥ ७९ ॥